रज्जू के बेटे ने
मिट्टी के कई ढेरों में
कद्दू के कई बीज
बोये बोये बोये ।
रात का अंधेरा था
चूहों का डेरा था
दो चूहे बीज खाने
गए गए गए।
सुबह को ना ढेर थे
न कद्दू के बीज थे
दो चूहे मोटे होके
सोये सोये सोये।
कविता प्रतिभा नाथ जी की है । मैंने कहीं पढ़ी थी सोचा आपसे बाँट लूँ ।
मिट्टी के कई ढेरों में
कद्दू के कई बीज
बोये बोये बोये ।
रात का अंधेरा था
चूहों का डेरा था
दो चूहे बीज खाने
गए गए गए।
सुबह को ना ढेर थे
न कद्दू के बीज थे
दो चूहे मोटे होके
सोये सोये सोये।
कविता प्रतिभा नाथ जी की है । मैंने कहीं पढ़ी थी सोचा आपसे बाँट लूँ ।
दुख बाँट लेने से आधा होता है और खुशी दोगुनी।
ज्ञान को जितना बांटो उतने ही होगे धनी।
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