18 नव॰ 2016

लाइनों में देश

सरकार का तर्क : ऐसा होना ही था । इसके लिए गोपनियता जरूरी थी । सारी तैयारी थी । पर्याप्त कैश है । व्यवस्था दुरुस्त है ।
असल हालत : ऐसी खबरें हैं कि चुनिन्दा लोगों को कदम के बारे में जानकारी थी । सरकार ने पिछले नौ दिनों में 7 बार नियम बदले हैं जिससे यही संकेत मिलता है कि तैयारी पूरी नहीं थी । बैंक समान्यतः 10 बजे खुलते हैं , 11 बजे तक कामकाज शुरू हो पाता है और 3 या 4 बजे तक कैश खत्म हो जाता है । इस बीच औसतन 100 लोगों का ही काम हो पाता है । इसका अर्थ है कि कैश पर्याप्त नहीं है । और व्यवस्था का आलम यह है कि घोषणा करने के 4 दिन बाद आर्थिक सचिव को बैंकिंग मित्रों का प्रयोग करने की याद आई
क्या किया जाना चाहिए था : यह ठीक है की गोपनियता आवश्यक थी लेकिन यह देखना भी जरूरी था कि जब 85% प्रचलित मुद्रा समाप्त हो जाएगी तब उससे निबटने के लिए कैसे कदम उठये जाएंगे । पर्याप्त मात्र में नोटों की छ्पाई, उन्हें वितरित करने का तंत्र, मशीनों और सोफ्टवेयरों का अपडेटिकरण, ग्रामीण क्षेत्रों में कैश वितरण व्यवस्था जैसी समस्याओं के बारे में भी विचार आवश्यक था।
·         इसके लिए अच्छी पृष्ठभूमि वाले काबिल अफसरों के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स बनाई जा सकती थी जिनमें बैंकिंग, वित्त, कृषि, उद्द्योग और सूचना के क्षेत्रों में काम कर चुके विशेषज्ञ अफसर होते । इस फोर्स को गोपनीयता के निर्देश दिये जा सकते थे ।  
·         बैंकों के दायरे को ग्रामीण क्षेत्रों में महीनों पहले बढ़ाना शुरू किया जा सकता था । ग्रामों में कई गांवों के बीच एक या दो बैंक होते हैं । इस स्थिति में पहले सुधार होता और तब यह कदम उठाया जाता।
·         नए नोट जब डिजायन किए जा रहे थे तब उसके आकार को ऐसा रखा जा सकता था जो पुराने एटीएम में ही फिट हो सकते और स्कैनर सेंसर भी उन्हें पहचान पाते तो बड़ी समस्या हल हो जाती ।
·         नोटों के वितरण के हर संभव चैनल को पहचान लेना चाहिए था और प्रधान मंत्री की घोषणा के साथ ही रेडियो, टीवी से विस्तृत दिशा निर्देश जारी करने चाहिए थे । जबकि हुआ उल्टा । प्रधानमंत्री जी खुद आए , घोषणा की और जापान चले गए। कोई अधिकारी संचार माध्यमों पर अगले दो दिनों तक नहीं आया । वित्त मंत्री आए भी तो सभी आरोपों को खारिज करते नज़र आए। जब स्थिति विस्फोटक हुयी तो प्रधानमंत्री राजनीतिक भाषण देते हुये गोवा में रोने लगे । राजनीति करने की जगह तुरंत मीटिंग करके हालत का जायजा लेना चाहिए था।  
·         बैंकों के लिए दिशनिर्देश पहले से तैयार रहने चाहिए थे । घोषणा होते ही बैंकों को स्पष्ट दिशनिर्देश डिस्प्ले करने कि व्यवस्था करें को कहा जा सकता था ।

विमौद्रिकरण अच्छा है या बुरा इसपर बहस हो सकती है । यह अच्छा कदम भी हो सकता है लेकिन इसे बहुत बुरी तरह से अंजाम दिया गया है । 

17 नव॰ 2016

एक शहर जो भविष्य को खा रहा है।


दिल्ली मुझे डराता है ।
यहाँ इतिहास कोने में सिमटा सहमा है 
वर्तमान धुएँ को फँकता , गहमा है 
भविष्य यहाँ खाँसता , धुआँ फाँकता 
फुटपाथ पर भीख मांगता ,चार्जर और चीप साहित्य बेचता 
रेलों में सुबह शाम बस्ता ले कर दौड़ता
अपने दिन गिन रहा है ।
दिल्ली मुझे डराता है  ।

दिल्ली में आने वाले
बिहार, उड़ीसा, मेघालय, नागालैंड के परवासी 

पिघल कर बन जाते हैं एक दिल्लीवाले 
चालाक, जुगाडु, स्वार्थी, अंधे, क्रूर
बीतती है जिनकी ज़िंदगी
नौ से पाँच ,
सुबह शाम सड़कों पर
रेडियो जौकी की अनवरत रटंत के बीच ।

जिंदगी गुजरती है यहाँ रेल की तरह
घर एक बर्थ है - बस सोने के लिए
वे जीते हैं जिंदगी 
दूसरों के लिए
 -----नहीं यह मानवता नहीं, गुलामी है 
जिंदगी बंधुआ है उनके ऑफिसों में
घर बस एक बर्थ है उनके लिए ।

दिल्ली की सुबह है किसी स्टेशन की तरह 
हर कोई कहीं जाने की जुगाड़ में है 
लेकिन पहुंचता कहीं नहीं 

दिल्ली पर शाम किसी मरघट की तरह उतरती है
और गिद्ध बैठ जाते हैं इंतज़ार में
रात श्मशान की तरह सूनी है 


दिल्ली मुझे डराती है 


16 नव॰ 2016

सक्षम नेता अक्षम तंत्र

मोदी जी ने राष्ट्रव्यापी ऑपरेशन तो कर दिया जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं । इतने साहसिक कदम के लिए जिस तरह की राजनीतिक इच्छाशक्ति और समर्थन की आवश्यकता होती है वह उनके पास है । वे अपनी आर्थिक दृष्टि का परिचय गुजरात के दिनों में दे चुके हैं जिसे गुजरात मॉडल माना जाता है । गुजरात में रहते हुये जिस प्रशासनिक दक्षता का उनहोनने परिचय दिया था वह सरहनीय है। इसीलिए जब 8 नवंबर की रात उन्होंने इस भीषण निर्णय की घोषणा की थी तब चौंकने के अलावा पीछे कहीं यह आश्वासन भी था की वे दक्ष प्रशासक हैं और कार्यपालिका के निर्देश के लिए उसके पीछे खड़े रहेंगे। लेकिन अपनी आर्थिक घोषणा की तरह ही वे सबको चकित करते हुये जापान चले गए तब जबकि देश को उनकी और उनके मार्गदर्शन की सबसे अधिक जरूरत थी। यही नहीं जब जनता में अफरा तफरी फैली और लंबी लाइनें लगने लगीं तब उनका जापान से मज़ाक के मूड में आया वीडियो जले पर नमक छिड़कने जैसा था । जब जनता मोदी मोदी करते हुये उनसे अक्षम नौकरशाही को दिशा देने की अपेकक्षा कर रही थी तब वे मज़ाक कर रहे थे की कांग्रेस ने चवन्नी बंद की थी हमने 1000 बंद किए जिसकी जैसे हैसियत । ऐसे मज़ाक फेसबुक पर तो अच्छे लगते हैं लेकिन गंभीर और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग अगर इस स्तर तक उतर आयें तो आसंवेदनशीलता प्रकट होती है । भारत लौटने पर जब उन्हें स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ होगा तो उनके आँसू निकल आए जिसे हम सबने उनकी गोवा रैली में भी देखा । स्वाभाविक है की जब आप इतना बड़ा कदम उठाएँ और वह फ़ेल होता नज़र आए तब आँसू निकालना वाजिब है । इन आंसुओं ने बेशक हमें यह दिखाया की हमारे प्रधानमंत्री उतने असंवेदनशील सनहीन है जीतने जापान से दिखरहे थे । प्रधानमंत्री क भी लगा की अब तो इस काम की योजना बनाना जरूरी है । यह साबरमती के घाट बनवाने जैसा काम नहीं था जिसमें बिना योजना के काम चल जाता । यहाँ तो 125 करोड़ प्यारे देशवासियों की बात थी । इसलिए रातों को भी ना सोने वाले और बिना छुट्टी के काम करने वाले पालनहार मोदी जी ने आधीरात को मीटिंग बुलाई वह भी 6 दिन बाद  । हालांकि यह मीटिंग अगर वे उसी दिन सुबह या दोपहर में बुलाते तो अगले दिन तक जनता में इसके कदमों की खबर पहुँच जाती । खैर उनकी कामकाजी शैली है । 6 दिन बाद की गयी इस मीटिंग के बाद जो सामने आया वह इस बात की पुष्टि करता था की हमारे देश की जनता बिलकुल किसी फौज की तरह इस निर्णय को मानने के लिए तैयार थी लेकिन सरकार के पास तैयारी नहीं थी । आर्थिक सचिव कहते नज़र आये की टास्क फोर्स बनाया "जाएगा", माइक्रो एटीएम लगाए "जाएंगे" इत्यादि । 6 दिन बाद भविष्य की प्लानिंग ? तब तक 16 लोग अपनी ज़िंदगी से हाथ धो चुके थे , कारोबार ठप्प हो चुका था , जनता काम धाम छोड़ कर लाइनों में थी। पहले की डेड लाइनें बढ़ायी जाने लगीं, और मोदी जी 50 दिन का समय मांगते नज़र आए । 50 दिन बाद सपनों के भारत का वादा भी किया और रोये भी । अपनी कुर्बानियों का भी हवाला दिया । हर प्रकार से जनता को आश्वस्त करते नज़र आए । अगले दिन गाजीपुर कि रैली में उनके भाषण में फिर तेज था हालांकि उनकी रैली में जो भीड़ थी पता नहीं उसे अपने नोट बदलवाने की चिंता क्यूँ नहीं थी । शायद उसे नए नोटों में पेमैंट मिल चुका था इसीलिए वह दुगने जोश से जादू के खेल की तरह ताली बजते नज़र आए और मोदी जी भी पूरे जादूगर । वे बार बार  कह रहे थे -- एक बार फिर ताली बजाईए" और तालियाँ बज रहीं थीं । लेकिन इस तालियों की गड़गड़ाहट के पीछे देश की जनता त्राहिमाम कर रही थी । वे क्रूर हो गए । काला धन वाले नींद की गोलियां ले रहे हैं और गरीब जनता आराम से सो रही है । शायद ताली बजने वालों को इकट्ठा करने वाले उनके दरबारियों ने उन्हें नहीं दिखाया कि गरीब सो नहीं रहा लाइन में खड़ा है और भविष्य को ले कर परेशान है। जबकि काला धन वाले अपने पैसे को ठिकाने लगा चुके हैं । खुद मोदी जी ने विदेशों में संपत्ति खरीदने, सोना खरीदने, निवेश करने और कंपनियाँ खोलने के मामलों में, धन  को आसान शर्तों पर विदेश भेजने की सीमा 3 साल पहले की 60000 डॉलर से बढ़ा कर 2 लाख डॉलर कर दी है जिससे 4 लाख करोड़ रु से अधिक धन बाहर गया है । सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का 1.14 लाख करोड़ लोन अब  बट्टे खाते में हैं जिसे माफ कर दिया गया है । यादव सिंह जैसों तक पर भी कार्यवाही नहीं हुयी है । ऐसी भी घटनाएँ हैं कि बीजेपी के खातों में घोषणा से ठीक पहले करोड़ों जमा हुये थे । पार्टीसीपेटारी नोट और हवाला पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी है । काला धन रखने वालों की जानकारी भी सरकार के पास है लेकिन इन पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी है । राजनीतिक पार्टियां के चंदे पर भी कोई कदम नहीं है । कम से कम मोदी जी बीजेपी को ही सूचना कानून के दायरे में ले आते । लेकिन यह उनके लिए कठिन है । क्योकि 2 वर्ष के कार्यकाल देखते हुये यही लगता है कि वह बेचारे सरकार और पार्टी में अकेले हैं । विदेश मंत्री होते हुये भी सभी तरह के कम काज और यहाँ तक कि घोषणाएँ भी वे खुद करते हैं । वित्त मंत्री के होते हुये भी यह काम भी खुद ही करते हैं । सरकार में केवल वही हैं जिनके बारे में यह सुनाई देता है कि वे दिन रात काम में जुटे हैं । तभी वे छुट्टी नहीं ले पाते । बिना ठीक से आराम किए थकान के कारण भी आपके निर्णय लेने कि क्षमता पर असर पड़ता है । लेकिन मोदी जी बचपन से खतरों के खिलाड़ी रहे हैं । जहां माँ भारती के सपूत भरत , सिंह से खेलते थे तो मोदी घड़ियाल से । शायद आँसू इसी ट्रेनिग का नतीजा हैं । 

14 नव॰ 2016

तुग़लक 2.0

तुग़लक को सनकी इसलिए कहा गया क्यूंकी वह निर्णय पहले लेता था और सोचता उसके बाद था और उसके लिए योजना उसके बाद बनाता था । मोदी जी के महान काला धन सफाई अभियान में आज ठीक 6 दिन बाद वित्त सचिव ने पहली बार इतने डिटेल में अनेक बातें रखीं । इससे पहले केवल मोदी जी अवतरित हुये थे और प्यारे देशवासियों को घंटे बार तक सम्बोधन करने के बाद वे तुरंत जापान चले गए । जनता को बेहद तकलीफ़ों का साना करना पड़ा जिसे जनता ने सैनिकों और देशभक्ति के नाम पर झेल लिया । कोई चूँ भी ना बोला की कहीं देशद्रोही न बन जाये । जिसने ज़ुर्रत की उसे फौरन ऊंची आवाज़ में पूछ लिया गया की हमारे सैनिक बॉर्डर पर खड़े रहते हैं तुम एक दिन नहीं खड़े रह सके ? गोया कोई पूछे उनसे की रातों रात पूरे देश को बॉर्डर क्यूँ बना दिया । फिर जापान से आक्रामकता और फिर गोवा में चवन्नी छाप मज़ाक के दौर के बाद कहीं जा कर मोदी जी को अब योजना बनाने की समझ आई ।
देश 6 दिन से अव्यवस्था में झूल रहा था और अब 6 दिन बाद आर्थिक सचिव वे बातें कहते नज़र आए जिन्हें पहले तय करना चाहिए था ।

1.       एटीएम पर चार लाइनें होंगी – बुज़ुर्गों और अशक्त लोगों के लिए भी । 8 तारीख की घोषणा में ही यह होना चाहिए था । लेकिन इनके बारे में पहले सोचा नहीं गया था । यह तथ्य सरकार में नीति बनाने वालों की जनता के बारे में समझ को रेखांकित करता है । हालांकि जैसी हालत है इस कदम से कुछ हासिल नहीं होगा । एटीएम एक ही है लाइने आप 16 बना दीजिये बात वही रहेगी । इसे सझने के लिए कोई रॉकेट साइंस नहीं चाहिए हनन देशभक्त इसे क्रांतिकारी कदम जरूर बताएँगे और सीधे सैनिकों से जोड़ देंगे।
2.       बैंकिंग प्रतिनिधियों को अधिक सक्रिय करने की आवश्यकता है । 1.2 लाख प्रतिनिधि हैं जिनकी पहुँच ग्रामीण क्षेत्रों तक है । इस तंत्र के उपयोग की सुध पहले क्यों नहीं थी ? और थी तो 6 दिन बाद विशेष घोषणा क्यों ?
3.       माइक्रो एटीएम की घोषणा की गयी है । इसमें कितने दिन लगेंगे और क्या घोषणा करते समय इस स्थिति की कल्पना नहीं की गयी थी की कैश की किल्लत होगी जो लोगों की ज़िंदगियों को लील लेगी यह घोषणा सरकार की बदइंतजामी को रेखांकित करती है ।
4.       टास्क फोर्स एटीएम को अपडेट करने के लिए बनाई जाएगी। यह घोषणा सबसे अजीब और सबसे भयानक है। जब आप भारत की 85% प्रचलित मुद्रा को वापस ले रहे हैं तो बेहतर योजना की अपेक्षा की जाती थी । 6 दिन बाद आप एटीएम अपडेट के लिए टास्क फोर्स बना रहे हैं इसका मतलब यह सब बिना किसी प्लानिंग के किया गया और इसमें संभवतः केवल मोदी जी और उनके सलाहकारों का ही हाथ था किसी विशेषज्ञ का नहीं । विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रक्रिया में 3 हफ्तों से अधिक का समय लग सकता है जबकि जेटली ने 3 हफ्ते का समय बताया था ।

5.       डेबिट और क्रेडिट कार्ड, पेटीएम और मोबाइल वालेट तक कितने देशवासियों की पहुँच है ? और ऐसी फौरी कार्यवाही में ऑनलाइन ट्रैंज़ैक्शन के भरोसे बैठना सरकार की अल्प तैयारी को इंगित करता है । 

9 नव॰ 2016

नोट 2 : नए नोट और पुराना मानव

मोदी जी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुये 500 और 1000 के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिया । उनके अनुसार यह काला धन , नकली मुद्रा और आतंकवाद के खिलाफ उठाया कदम है । मीडिया और आम जनता इस फैसले से परेशान और मुदित दोनों है। अभी तक मोदी की भूरी भूरी प्रशंसा करने वाले लेकिन काले धन के रखवाले अब बुझे मन से इसे महान फैसला बता रहे हैं तो समाज का निचला तबका दबी ज़ुबान से इस परेशानी की आलोचना कर रहा है । आइए देखें की असल तस्वीर क्या है 

ऐतिहासिक फैसला : यह तो इतिहास बताएगा की फैसला ऐतिहासिक है या नहीं लेकिन अगर मोदी जी नरसिम्हा राव - मनमोहन सिंह की तरह आर्थिक इतिहास में अपना नाम लिखना चाहते हैं तो उन्हें शायद निराशा ही हाथ लगे क्योंकि ये पहला मौक़ा नहीं है जब बड़े नोट बंद किए गए हैं. साल 1946 में में भी हज़ार रुपए और 10 हज़ार रुपए के नोट वापस लिए गए थे. फिर 1954 में हज़ार, पांच हज़ार और दस हज़ार रुपए के नोट वापस लाए गए. उसके बाद जनवरी 1978 में इन्हें फिर बंद कर दिया गया. इस प्रक्रिया के उस समय के परिणामों के बारे  में खोजने पर मुझे BBC की साइट पर एक दिलचस्प बात पता लगी । उस वक़्त के रिज़र्व बैंक के गवर्नर आई जी पटेल सरकार के इस फ़ैसले के पक्ष में नहीं थे. उनके मुताबिक़ जनता पार्टी की सरकार के ही कुछ सदस्य मानते थे कि पिछली सरकार के कथित भ्रष्ट लोगों को निशाना बनाने के लिए ये क़दम उठाया गया है. इंडिया टुडे पर एक लेख में यह भी इंगित किया गया था की यह कदम जनता सरकार ने कांग्रेस को चंदे का कैश चुनावी अभियान में खर्च न करने देने के लिए उठाया था।  गवर्नर पटेल ने तत्कालीन वित्त मंत्री को सुझाव दिया था कि इस तरह के फ़ैसलों से मनमाफ़िक परिणाम कम ही मिलते हैं. काले धन को नक़द के रूप में बहुत कम लोग लंबे समय तक अपने पास रखते हैं. पटेल के मुताबिक़, सूटकेस और तकिए में बड़ी रकम छुपाकर रखने का आइडिया ही बड़ा बचकाना किस्म का है और जिनके पास बड़ी रक़म कैश के तौर पर है भी वो भी अपने एजेंट्स के ज़रिए उन्हें बदलवा लेंगे.
फायदे : मोदी जी के इस कदम का सकारात्मक पक्ष भी हैं 
1- नकली करेंसी : इस कदम से नकली करेंसी के खिलाफ एक प्रभावी हमला हुआ है । नए नोटों की नकल करने और उन्हें खपाने में कुछ समय लगेगा और यह महंगा भी होगा। सरकार को इसके साथ ही नकली नोटों को ट्रेस करने का प्रभावी तंत्र विकसित करना होगा। 
2।- आतंकवादियों को फंडिंग : इस कदम ने आतंकियों की फंडिंग को कुछ समय के लैये रोक दिया है । लेकिन देश में बैठे ऐसे प्रभावी लोग जो इन आतंकवादियों को फंड कर रहे हैं उन्हें भी खतम करना होगा । अनेक नेता और उद्योगपति और काला धन अजेंट इस तंत्र में शामिल हैं । 
3- अघोषित धन : काला धन जो बिना टैक्स चुकाए लोगों के पास रहता है । यद्यपि यह नकदी में नहीं रहता । लोग काले धन को तुरंत ही रियल एस्टेट या सोने की खरीद में लगा देते हैं । नोटों को रातों रात बंद करने से इसका एक बहुत छोटा तात्कालिक हिस्सा है वही बाहर होगा । बाकी बड़े खिलाड़ीयों के पास इसके अनेक विकल्प मौजूद हैं। पिछली रात भर भारत के अमीरों ने सोने की खरीददारी की है इससे सोने के ब्लैकमार्केट में भाव इस समय तक 44000 से ऊपर पहुँच चुके हैं। 
4- अपराध और नशे के व्यापार का पैसा भी बाहर होगा। 

समस्या क्या है : इस कदम से सबसे अधिक परेशानी कुछ समय के लिए उस व्यक्ति को हो रही है जो छोटा मोटा काम करता है और अपना नकद पैसा अपने पास रखता है । जैसे थोक, किराना, सब्जी विक्रेता, आढ़ती, परचून, बेकरी, टेलर, ट्यूशन इत्यादि। इससे छोटी बचतें भी प्रभावित होंगी जैसे कमेटी, किटी या ऐसे ही अन्य साधन। इससे ऐसे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे जिंका बैंक में खाता नहीं है । उनके कैश को ले कर समस्या पैदा होने वाली है क्योंकि उनका नकद पैसा दरअसल उनकी रोजाना की जिंदगी का सहारा है । अगर इसमें एक भी दिन की देरी होती है तो उनके खाने पीने की समस्या पैदा हो जाती है 

क्या असली काला धन बाहर आएगा ? इसमें शक है । बड़े व्यापारी, रिश्वतखोर अधिकारी, नेता अपना पैसा नकद नहीं रखते । आज उनके पास अनेक विकल्प हैं । ऑफशोर कंपनियाँ, विदेशों में खाते , सोना, चैरिटी, रियल एस्टेट, बेनामी सौदे, आभूषण इत्यादि। इसलिए यह पैसा वापस मिलने से रहा। हाँ अगर इस कदम के साथ ही ऐसी नीतियाँ बनायीं जातीं जो इन सौदों पर रोक लगा सकतीं तो बेहतर था। आपने चुनावों के दौरान सुना होगा की एक गाड़ी से करोड़ों रुपये पकड़े गए। यह पैसा राजनीतिक पार्टियों का पैसा होता है जो कभी खुल कर सामने नहीं आता। अगर इस कदम के बावजूद आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों में नेता हैलीकॉप्टर और रथों का प्रयोग करें और विशाल रैलियाँ हों तो समझिए इस सर्जिकल स्ट्राइक का भी वही असर हुआ है जितना पाकिस्तान पर। जब सरकार ने पार्टीसीपेटारी नोट बंद करने की कोशिश की थी जो अवैध धन का शेयर मार्केट में निवेश का एक चैनल है तब शेयर बाज़ार की हलचलों से परेशान हो कर यह कदम सरकार को वापस लेना पढ़ा था। हमारे शेयरा बाज़ार में एफ़आईआई निवेशक इसी माध्यम से पैसा लगते हैं और इसके जरिये भारतीय भी अपना काला धन सफ़ेद करते रहते हैं । इन सभी तरीकों में से किसी पर रोक नहीं लगने वाली और यही वह काला धन है जिसका आकार अविश्वसनीय है ! 

इस कदम के सीमित आर्थिक फायदे हैं लेकिन राजनीतिक फायदे बहुत हैं और यह मोदी का मास्टर स्ट्रोक है। 

  • मोदी पर जो लोग काले धन को लेकर दोगलेपन का आरोप लगा रहे थे वे अब हमेशा हमेशा के लिए चुप बैठ जाएंगे क्यूंकी इससे बड़ा कदम और क्या होगा। 
  • उत्तर प्रदेश चुनाव सर पर हैं अब विरोधी दलों के पास कैश खत्म हो गया है। 
  • आतंकवादी और देशविरोधी गतिविधियां अगर थमेंगी नहीं तो धीमी तो जरूर पढ़ेंगी और आजकल के हालात में यह एक राहत वाला कदम है। 
  • उत्तर प्रदेश चुनाव में यह न केवल एक मुद्दा होगा बल्कि चुनाव इसी के आसपास केन्द्रित किया जाएगा । 


1 अग॰ 2016

बंटी .....तेरा साबुन स्लो है क्या ?

भाजपा या कहें मोदी सरकार के मंत्रियों की एक खास बात है । वे सब आवश्यक बातों पर चुप्पी साधे रहते हैं और जब मौका मिलता है फौरन अपनी ज़ुबान बोलते हैं । उन्हें और कुछ भी बोलना नहीं आता । वे इसके लिए मौका नहीं देखते। पर्रिकर जी को तो वैसे ही बोलते कम ही सुना है लेकिन हाल ही में जब बोले तो लगा कि शायद आमिर खान को धोना वे भूल गए थे सो एक वर्ष बाद ही सही फिर से उन्हें धमकी दे डाली । वैसे धौंस तो अपनों पर ही चलती है । चीन की उत्तराखंड में घुसपैठ और 20 वर्ष से अधिक पुराने मालवाहक विमान की दुर्घटना(?) से उपजे सवालों के लिए आमिर खान कि आड़ में देशभक्ति छाँटने का इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता था ? ठीक है ----धोते जाओ , धोते जाओ जनता को तो ढोना है । 

31 जुल॰ 2016

हासिल ? .......कुछ भी नहीं

शहर का व्यस्त चौराहा है यह । तीन मुख्यमार्गों को जोड़ता चौराहा दुर्घटनाओं, प्रचार और भिखमंगों से कभी खाली नहीं रहता। ट्रैफिक पुलिस की वसूली और प्रबंधन की व्यस्तताओं के बीच इस चौराहे पर भीख मांगने के नए से नए तरीके फौरन अमल में आते हुये दिखते हैं । पिछले वर्ष शनि के डिब्बे में तेल भरकर लोगों के आस्था और अंधविश्वास मिश्रित भय का दोहन चला था । उससे भी पिछले वर्ष एक टोकरी में काली लोहे की प्लेट पर सफ़ेद आँखें और लाल जीभ के साथ यही काम काली माई का था । लँगड़े लूले तो खैर हैं ही लोगों की संवेदनाओं को उभार कर वसूली करने का समयसिद्ध हथियार । अभी हाल ही में छोटे बच्चों को गोद में लिए औरतें वात्सल्य को भी दुहने में व्यस्त दिखीं । कहीं किसी ने बताया की बच्चे भी इस दुनियाँ में किराये पर मिलते हैं और इन्हें अफीम चटा कर सुला लिया जाता है ताकि रोने संभालने के झंझट से बचा जा सके । ये दृश्य हमेशा परेशानी में डाल  देते हैं मुझे । पसोपेश में होता हूँ कि भीख देना ठीक है या नहीं। व्यक्तिगत रूप से लगता है कि भीख ना देना ठीक है क्यूंकी इस तरह आप भीख कि प्रवृत्ति को ही समर्थन देते है । इस विचार कि पुष्टि एक मित्र ने भी की जो पुलिस में हैं और बताते हैं कि भीख उन भिखारियों की नहीं होती बल्कि उस क्षेत्र के मालिक की होती है । यह मालिक अमूमन दबंग या गुंडा होता है और उसके अनेक कामों में भीख का प्रबंधन भी शामिल होता है । कहना आवश्यक नहीं कि इसमें "ठुल्लों" का कमीशन भी शामिल होता है, अन्यथा नाक के नीचे यह सब ना चलता। जो भी हो गरीबी का यह अतिशय रूप संवेदनाओं को कुरेद देता है । मेरा मन कभी भी 5 रुपये देने के बाद पुण्य के एहसास से सराबोर नहीं हो पाता । हम पुण्य कर सकें क्या इसके लिए ऐसे गरीबों का होना जरूरी है ? दान का गर्व हो इसके लिए क्या अकिंचन पात्र चाहिए ? मनुष्य की प्रगति का क्या यही जमा हासिल है कि कुछ लोग जीवन को पेट भरने कि दौड़ में बिताएँ और कुछ लोग एंटीला में रहें ? विश्व की दौलत का 99% महज 1% लोगों के पास जमा होना भी तो ठेक नहीं और 5 रुपये टिका देने से क्या पूंजी का प्रवाह पलट जाएगा ?  भारत की महाशक्ति का इनके लिए क्या मतलब । चौराहे पर रीति हथेली फैलाये बच्ची की शून्य आँखें उस व्यवस्था का खोखलापन बताती हैं जो उसने अंजाने में बना ली है । 

6 मार्च 2016

सत्यमेव जयते

देश की सरकारें सत्य को झुठलाने से लेकर (याद कीजिये कपिल सिब्बल के वे शब्द - ज़ीरो लॉस ) अब झूठ को ही सत्य बनाने लगी हैं ।
कन्हैया देशद्रोही हो जाता है , तो स्मृति ईरानी का अभिनय सत्यमेव जयते । वे मंत्री , नेता जो असल में देशद्रोही हैं और हत्या, चोरी , बलात्कार के आरोपी हैं और संसद में बैठे हैं वे देशप्रेम का स्वांग रचते हैं , करोड़ों के बैंक लोन को डकार कर राज्य सभा सदस्य होने के नाते सज़ा में छूट चाहने वाले खुद को पवित्र मानते हैं । प्रधनमंत्री को सत्यमेव जयते का प्रयोग करना चाहिए लेकिन तब, जब वे इसकी शुचिता को सुनिश्चित कर सकें - लेकिन शायद उन्हें भी इसका अर्थ उल्टा ही सिखाया गया हो । 

28 फ़र॰ 2016

लफ़्फ़ाजियाँ और अभिव्यक्ति

लोकतन्त्र की हत्या हो जाती है जब "संसद" में लफ़्फ़ाजियाँ चलें, और बिल सदन के बाहर से तय होकर कानून बन जाएँ। लोकतन्त्र तब भी नहीं रहता जब सत्ता के लिए अनाप शनाप पैसा और अनर्गल प्रलाप किए जाएँ। लोकतन्त्र तब भी दम तोड़ देता है जब प्रेस जनता के साथ की बजाए किसी दल का भौंपू बन जाता है। लोकतन्त्र में मतभिन्नता की जगह है लेकिन भिन्नमति की नहीं । हम अलोकतंत्र में रहते हैं । 

20 फ़र॰ 2016

सत्ता का चुंबक


देशभक्ति की मोनोपॉली

वे देश में ईसाइयों के खिलाफ हैं , वे देश के मुसलमान नागरिकों के खिलाफ हैं, वे वामपंथियों को पसंद नहीं करते , वे कांग्रेसियों के खिलाफ हैं,वे अन्ना के खिलाफ हैं , वे अरविंद केजरीवाल के खिलाफ हैं,  वे गांधी को मारते हैं, नेहरू को गालियां देते हैं, वे जेएनयू के खिलाफ हैं, वे फिल्म और अभिनय शिक्षण संस्थाओं के खिलाफ हैं, वे पत्रकारों के खिलाफ हैं, वे साहित्य के खिलाफ हैं , वे आमिर, शाहरुख और सलमान के खिलाफ हैं, वे वैलेंटाइन के विरोध में हैं, वे स्त्री की आज़ादी के विरोध में हैं, वे तसलीमा नसरीन और सलमान रुशदी के विरोध में हैं , वे वैज्ञानिक सोच के खिलाफ हैं, वे दाभोलकर के खिलाफ हैं, वे अंधविश्वास से लड़ने वालों के खिलाफ हैं, वे कला के विरोध में हैं, वे ज्ञान के विरोध में हैं,  वे मकबूल फिदा हुसैन के विरोध में हैं, वे मानवता की सेवा करने वाले लोगों के विरोध में हैं , वे मदर टेरेसा के विरोध में हैं ,  वे बीएचयू के उन शिक्षकों के खिलाफ हैं जो लोगों के हक़ में आवाज़ उठाते हैं , वे आदिवासियों, गरीबों और किसानों के खिलाफ हैं, वे खुद से अलग विचार के खिलाफ हैं।

 वे इन सब को देशद्रोही कहते हैं 

जो उनका समर्थक नहीं वह देशद्रोही है । 

केवल वे ही देशभक्त हैं । 

देशभक्ति उनके लिए "पाकिस्तान मुर्दाबाद" से शुरू हो कर "मोदी ज़िंदाबाद" पर खत्म हो जाती है। देशभक्ति की इस तंग सोच में वे आसाराम बापू के लिए जगह रखते हैं। उनके पास दारासिंह के लिए जगह है पर मदर टेरेसा के लिए नहीं , वे नाथुराम गोडसे के लिए मंदिर बनवा सकते हैं लेकिन इन मंदिरों में औरतों और दलितोंके लिए जगह नहीं । वे बेटा पैदा करने की दवा बेच सकते हैं और बेटियों के पहनावे पर ऐतराज कर सकते हैं, यहाँ तक की उन्हें सरे आम घसीट कर पीट भी सकते हैं । वे बलात्कार होने पर लड़कियों के चरित्र पर  प्रश्न उठा सकते हैं , वे किसी भी लड़के को देशद्रोही साबित किए बिना न्यायालय परिसर में ही जज से पहले उसे सजा दे सकते हैं , वे गलियाँ दे सकते हैं , हत्याएँ कर और करावा सकते हैं  - क्योंकि वे देशभक्त हैं । 

सोचिए! 
शायद वे जनता के समर्थन में हैं 

नहीं -------जनता उनके समर्थन में है।  अगर नहीं  होगी तो गद्दार कहलएगी जैसा दिल्ली और बिहार की जनता है । 

इस देश में केवल वे ही अकेले देशभक्त हैं । देशभक्ति के कॉपीराइट होल्डर वही हैं । देशभक्ति के बाज़ार में वे अपनी वैसी ही मोनोपोली चाहते हैं जैसी तालिबान की है । 

जय हिन्द