15 मार्च 2013

कच्छ नहीं देखा तो कुच्छ नहीं देखा -3

रण उत्सव : ट्रेन से हम लोग भुज पहुँच कर होटल में रुके। वहाँ रात को चाचा जी, चाची जी और मेरी बहन आयुषी भी अहमदाबाद तक हवाई मार्ग से व भुज तक सड़क मार्ग से आ पहुंचे। उनका कमरा हमने पहले ही ले लिया था। अगले दिन चाचा जी की एक शिष्या, जो प्रशासनिक सेवा में चयनित हो कर अहमदाबाद में ही पोस्टेड है  द्वारा उपलब्ध कराई गयी इनोवा में बैठ कर रण उत्सव की ओर चले। लगभग 12 बजे तक हम टेण्ट सिटी पहुंचे। यहा काउंटर पर हमें तीन दिन के फूड कूपन, कैप, पहचान पत्र इत्यादि मिल गए और पोर्टर सेवा ने हमारा सामान हमारे तयशुदा टेंटों में पहुँच दिया।  इसके बाद सीधे हम लोग डायनिंग हॉल में गए क्यूंकी नाश्ता 12:30 तक ही मिलना था। डायनिंग हॉल पहुँच कर हमें लगा की अगर आगाज ऐसा तो अंजाम कैसा होगा । और आगाज तो बहुत ही अच्छा था। बिना किसी अव्यवस्था के करीने से लगे स्वादिष्ट पकवानों की मेज़ों से आती खुशबू ने भूख बढ़ा दी थी। गुजरती, राजस्थानी और सामान्य पकवानो के विकल्प मौजूद थे। तृप्त हो कर वहाँ से निकले और पहुंचे सीधे अपने टेंट में। यह स्थान बहुत ही खूबसूरत था। अर्ध चंद्राकार में अनेक टेंट लगे थे। A से शायद K तक के ब्लॉक थे और हर ब्लॉक में लगभग 50 टेंट थे। हर टेंट में अटैच बाथरूम था और एसी एवं हीटर दोनों का प्रबंध था। चाय बनाने का सामान व केतली भी मौजूद थी और किसी जरूरत के लिए रूम सर्विस को फोन से इत्तिला दी जा सकती थी। हम सब फ्रेश होकर थोड़ा घूमने निकाल गए। तभी सूचना दी गयी की 3 बजे टूर बसें हडको विलेज और व्हाइट सेंड व सूर्यास्त दिखने के लिए चल पड़ेंगी अतः हम जल्दी से तैयार हो कर बसों के साथ ही निकाल पड़े।

हडको विलेज: यह एक अनावश्यक पड़ाव था और वस्तुतः इस गाँव में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे दर्शनीय कहा जा सकता। मेरी आगामी पर्यटकों से गुजारिश है की यदि आप अपने वहाँ से हैं तो बेहतर है की थोड़ा रुक कर सीधे सनसेट प्वाइंट पहुंचा जा सकता हैं।

श्वेतरज पर सूर्यास्त : मीलों तक जहां दृष्टि जाती थी मानो श्वेत धवल हिम की पर्त बिछी हो। पावों तले नीचे देखने पर काली मिट्टी में मिश्रित यह श्वेतवर्णी  कर्क रेखीय हिम वस्तुतः नमक निकला। कच्छ के इस भाग में  समुद्री पानी अंदर तक चला आता है और तेज़ धूप में पानी सूख कर लवण बच जाता है जी श्वेत पर्त के रूप में मीलों तक फैला दिखाई देता है । अन्वी और विश्वम ने तो एक पोलीथिन ले कर लवण भरने में  मशगूल हो गए। हम सबने यहाँ फोटो खींची। बच्चों ने पतंग भी उड़ाई। 

1 टिप्पणी:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आपका ये यात्रा वृत्तांत कुच्छ ज़्यादा ही मज़ेदार लगा। विशेषकर ... श्वेतरज का सूर्यास्त। मन कर रहा अब घूम ही आऊँ। :)