12 नव॰ 2012

जनता है सोने की मुर्गी

2G घोटाले के बाद अब तक घोटालों के प्रति हमारी संवेदनाओं को तृप्त करने वाले और भीषण, विभीषण प्रकार के घोटाले सामने आ चुके हैं। पर जैसा की हर घोटाले में होता है - दोनों ओर से जनता ही हलाल होती है। पहले तो जनता के कारों के पैसों से विकसित तकनीक को कौड़ियों के दामों पर निजी कंपनियों को बेच दिया गया। इन कंपनियों ने इसके ज़बरदस्त दाम वसूले। शायद आपको वह ज़माना याद भी ना हो की 1997 में मोबाइल कॉल दरें 18 रू प्रति मिनट थीं और इंकमिंग भी फ्री नहीं थी। फिर घोटाला खुला और न्यायालय ने सभी आबंटन रद्द कर दिये। हालांकि सज़ा नहीं हुयी। न्यायालय असाहय है। आरोप सिद्ध करना जिसका काम है वह करबद्ध और नतमस्तक है। लेकिन न्यायालय के इस फैसले के बाद अब मंत्री जी का संकेत है की दाम बढ़ेंगे। यानि जनता को फिर से हलाल किया जाएगा। क्या न्यायालय सुओ मोटो इस मामले को ले कर न्याय दिलाएगा की स्पेक्ट्रम के आबंटन से जो घाटा हुया वह इन कंपनियों के प्रॉफ़िट से वसूला जाए, दोषी नेताओं के वेतनमान, भविष्यनिधि और पेंशन फंड से काटा जाए। स्पेक्ट्रम नीलामी के नाम पर कॉल दरों को बढ़ाना नैसर्गिक न्याय का स्पष्ट उल्लंघन है। आखिर जनता कितनी बार और क्यूँ टैक्स भरे? पहले तकनीक विकास के लिए, फिर उस तकनीक के उत्पाद को खरीदने और प्रयोग करने पर टैक्स, और अब घोटालेबाज कंपनियों को जब दोबारा पैसा देना पड़ रहा है तो बढ़ी कॉल दरों के रूप में अनुचित भुगतान और अनुचित टैक्स। क्या न्यायालय संज्ञान लेगा ? 

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