6 अग॰ 2007

"हम भारत (मुंबई..... ) के लोग"

भारतीय संविधान के ६० वर्षों के क्रियान्वयन के दौर में आज सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण क्षण है जब कि लोकतंत्र के ही विभिन्न अंगों से लोकतान्त्रिक व्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो गया है. इतिहास गवाह है कि जब जब राज्य के ज़िम्मेदार अंग अपना कर्त्तव्य नहीं निभा पाते तो दक्षिणपंथी ताकतें सर उठती हैं. वर्तमान परिद्रश्य में शिवसेना, बजरंग दल, व अन्य सांप्रदायिक और क्षेत्रीय भाषाई कट्टरपंथी दलों के उभार को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है.

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाने, तथा उसके नागरिकों को सामजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता, प्राप्त करने और उन सभी मिएँ व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता  बढ़ाने के लिए- दृढसंकल्प हो कर २६ नवम्बर १९४९ ई० को इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.

ऊपर लिखा यह विशाल वाक्य हमारे संविधान की आत्मा है. सरल शब्दों में  यह भारत को एक लोकतंत्र घोषित करता है और उसके नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी देता है तथा भारत की एकता और अखंडता की सुरक्षा का आश्वासन देता है . इन अधिकारों को संविधान के अलग अलग भागों में अनेक कानूनों के द्वारा सुनिश्चित किया गया है और पिछले ६० वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक निर्णयों  के द्वारा इसके दायरे को विकसित किया गया है लेकिन इन्हीं ६० वर्षों में इन गारंटियों की धज्जियाँ भी उडाई गयी हैं. हमारे संविधान की पवित्रता के रक्षकों  के लिए एक सबसे बड़ी चुनौती इन विद्ध्वन्सक  तत्वों से संविधान की रक्षा करना ही है. इसके लिए यह बेहद ज़रूरी हैं की ये रक्षक (कार्यपालिकाविधायिका और न्यायपालिका)  सदैव सजग रहें. लेकिन क्षोभ होता है इन रक्षकों कि चुप्पी देख कर. कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका अपने अपने दायित्व नहीं निभा पा रहीं हैं और इसका सबसे बड़ा कारन इन अंगों का घोर राजनीतिकरण और भ्रष्टाचरण है.

वर्तमान मराठी मानुस विवाद एक त्रासदी है. संविधान में प्रदत्त अधिकारों, उनके रक्षक कानूनों और प्रत्येक नागरिक के कर्तव्यों की धज्जियाँ खुलेआम उड़ाई जा रहीं हैं.

संविधान का अनुच्छेद १५ हमें आश्वासन देता है कि हमसे भारत देश में धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा. अनुच्छेद १६ के द्वारा संविधान सरकारी नौकरियों में  न केवल अवसर कि समानता देता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि हमसे धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद ना हो. इसी प्रकार अनुच्छेद १९ प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति एवं अन्तः कारन की स्वतंत्रता प्रदान करता है. हमें यही अनुच्छेद सम्पूर्ण भारत में घूमने फिरने, कहीं भी बस जाने और कोई भी व्यवसाय कहीं भी करने का अधिकार देता है. परन्तु अभिव्यक्ति का यह अधिकार निर्बाध नहीं है. इन स्वतंत्रताओं पर रोक भी लग सकती है यदि इनका प्रयोग भारत कि एकता, अखंडता, संप्रभुता, लोकव्यवस्था, विदेशी राज्यों के साथ मैत्री पूर्ण संबधों पर विपरीत असर डालने में किया जायेगा. संवैधानिक पदों पर व्यक्ति को प्रतिज्ञान करनी होती है उसका पूरा खाका भी संविधान कि एक अलग सूची (तीसरी अनुसूची) में किया गया है. प्रत्येक विधायक, सांसद और मंत्री को संविधान के प्रति निष्ठा कि और एकता व अखंडता को सुरक्षित रखने कि शपथ लेनी होती हैं.

अब यदि उपरोक्त तमाम कानूनों के प्रकाश में हम बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के वक्तव्यों को देखें तो प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके कृत्य संविधान विरोधी हैं.

बैंक या रेलवे के परीक्षर्थियों पर हमला और उन्हें परीक्षा से वंचित करना अनु० १५ और १६ का उल्लंघन है. साथ ही यह ऐसी अभिव्यक्ति है जो लोकव्यवस्था, एकता, अखंडता, संप्रभुता पर विपरीत असर डालती है अतः इसकी अनुमति किसी संगठन को नहीं दी जा सकती (अनु० १९).

पाकिस्तान या ऑस्ट्रेलिया के खिलाडियों सम्बन्धी राज - बाल ठाकरे के बयान निश्चित तौर पर विदेशी राज्यों से संबंधों पर विपरीत असर डालते हैं और अनु ० १९ का उल्लंघन करते हैं.

उत्तर भारतीयों को मुंबई से भगाने, उन पर हमला करने जैसे कृत्य अनु० १५, १६ की बखिया उधेड़ते हैं तो एक राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन भी करते हैं. चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और राजनैतिक दलों के लिए निर्धारित आचार संहिता के पहले पैराग्राफ में ही लिखा है कि "कोई भी पार्टी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगी जो धर्मंजाति, समुदाय या भाषा के आधार पर विभेद पैदा करती हो." पर शिवसेना, ब्विश्वा हिन्दू परिषद् आदि दल ऐसा ही करते हैं और खुले आम करते हैं. 

ये दल स्वयं को सांस्कृतिक दल कहते हैं परन्तु इनकी कार्यवाहियां हिंसक, फासीवादी और अलगाववादी हैं. यह दल इसी अराजकता के सहारे थोड़ी सी राजनैतिक शक्ति जुटा कर  क्षेत्रीय राजनीति में सौदेबाजी करते हैं और तो और केंद्रीय राजनीती को भी प्रभावित करते हैं. यह भी संविधान का उल्लंघन ही है क्यूंकि संविधान लोकतान्त्रिक व्यवस्था कि गारंटी देता है जबकि यह दल हफ्ता वसूली गुंडों के दल कि भांति काम करते हैं. शिवसेना केवल मुंबई कि राजनीती कर के स्वयं को पूरे महाराष्ट्र का ठेकेदार मानती है. २८८ में से केवल १३ सीटें जीतने वाले दल आखिर राजनीती कि दिशा क्यूँ तय करें? इस प्रकार शिवसेना हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर हर दृष्टि से प्रश्नचिंह लगाती है.  वे इसी संविधान कि ओट ले कर इसी पर हमला करते हैं.  इस प्रकार के अपराधियों के लिए हिंदी और मराठी में एक ही शब्द है - गद्दार या देशद्रोही. हमें पाकिस्तानी आतंकवादियों से तो कभी कभी ही हमले का सामना करना पड़ता है लेकिन अंदरूनी आतंकी तो उनसे भी खतरनाक हैं. मैं एक जागरूक नागरिक के नाते क्षोभ, आश्चर्यचकित, दुखी और क्रोधित हूँ कि आखिर क्यों भारत कि संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका इन मसलों पर चुप्प है. तजा महल को बचने वाली न्यापालिका आखिर भारत को बचने के लिए कब सक्रिय होगीयह चुप्पी अब नहीं टूटी तो देश टूट जायेगा.

                                                                                                            अनुपम दीक्षित

1 टिप्पणी:

Anupam Dixit ने कहा…

हम bhaarat ke log ek puraskrit lekh hai. dainik hindustan evam google ki sanyukt pratiyogita mein is ne pratham 50 lekhon mein jagah banayee thi.